मखमली रूई के फाहे सा
बादलों से चुहल करता
ग़ज़लों में बसा आशिक़
महबूबा ... नज़्मों-रुबाई का
रातों का सूरज
सितारों का शहंशाह
आसमान के सहन में
इठलाता था चाँद
चांदनी बिखेरता ...
अपनी गोलाइयों पर
मुस्कुराता था चाँद
आसमां से पिघल ... पानी में
अकसर उतर आता था चाँद
इक रोज़ ...
मचलती नन्हीं भूख भी
चाँद से भरमा गयी
चाँद घुल गया भूख में
और भूख हो गयी पानी
औकात से ज़्यादा का लालच !!!
तब से नाराज़ आसमां
अँधेरे से लौ लगाये बैठा है
बूँद-बूँद उतरता पानी में
चाँद के लिये ...
इन्साफ की कसमें उठाये बैठा है
(शब्द-व्यंजना जुलाई-2014)