वो शब्द अलंकार
जिन्होंने गढ़ी
प्रेम की परिभाषा
मेरे तुम्हारे बीच
मेरी कल्पना थी
कविता थी
या ...थे तुम
स्वप्नों का ब्रह्मांड
जिसमें पूरक ग्रहों से
करते रहे परिक्रमा
मैं और तुम
मेरी कल्पना है
कविता है
या हो तुम
काल से चुराया एक पल
जिसको पाकर
बढ़ गयी जिजीविषा
मुझमें ... तुम में
मेरी कल्पना है
कविता है
या हो तुम