Monday 26 August 2013

शब्द आग-आग है.....

ज़हर है शिराओं में
शब्द आग-आग है
कलम के सिरों पे अब
धधक रही मशाल है

रूह की बेचैनियाँ
स्याह रंग बदल रहीं
चल रही कटार सी
लिए कई सवाल है

ध्वस्त हैं संवेदना
लोटती अंगार पे
अर्थ हैं ज्वालामुखी
लावे में उबाल है

स्वप्न चढ़ चले सभी
वेदना की सीढ़ियाँ
नज़्म के उभार में
लहू के भी निशान हैं

बस्तियाँ उम्मीद की
जल रहीं धुँआ-धुँआ
छंद-छंद वेदना
प्रलाप ही प्रलाप है

उभर रहीं हैं धारियाँ
पाँत-पाँत घाव सी
बूँद-बूँद स्याही में
जाने क्या प्रमाद है 

Monday 12 August 2013

अवसान के द्वार पर ...

स्वच्छ श्वेताकाश में बदलियाँ
किसे चल रहीं पुकारती
बूँदें ....आसमान से टपक
रह जातीं अधर में लटकी
दूर ....चटख रंगों का इंद्र-धनुष
कानों में गूँजती कोयल की कूक ....
शायद वही .....नहीं ....पता नहीं !!
मखमली घास के बिस्तर पर चुभन सी
रंगीन पंखुड़ियाँ ....दूर हैं ?....पास हैं ?
क्यूँ है उलझन सी ???
बह जाने की चाहत
और हवा इतनी मद्धम
कुछ घुटन ...कुछ बेचैनी
नाड़ियों में थमने लगी है ...
तरसी आँखों की नमी
जाने फरिश्तों की क्या है मर्ज़ी !!

समीप खड़ा बाहें पसारे
जीवन का अवसान
संग ले आया है ...स्वर्ग की सीढ़ी
फिर भी ....प्रतीक्षित नयन द्वार पे
आता होगा तारनहार 
चख लूँ ज़रा ...अंतिम बार
इन आँखों से ...ममता की नमी
ओह !
क्या रहेगी ये प्रतीक्षा भी निहारती
...अनंत की ठगनी