Saturday 27 April 2013

आईने से मुलाक़ात ...


यूँ आईने से मुलाक़ात किया करो
कभी खुद को भी यारा जिया करो

ज़िन्दगी के सफर में बिछड़े कई
कभी नाम उनका भी लिया करो

रूठों को मनाना नामुमकिन नहीं
कभी सब्र के जाम पिया करो

न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
अँधेरों को भी रोशन किया करो

मौत के इंतज़ार में बेज़ार हो क्यूँ
ज़िन्दगी को एहतराम दिया करो 

ढूंढते हो दैर-ओ-हरम में सुकूं
क्यूँ न गैरों के ज़ख्म सिया करो

13 comments:

  1. वाह ... बहुत ही गहरा और खुबसूरती से ख्याल को सजाया है आपने हर शेर में ....
    बहुत खुब ! आपकी सारी रचनायें बहुत प्रशंसनीय के साथ साथ कुछ ना कुछ सीखती हैं ...
    हर्दय से नमन** आपकी अभिव्यक्ती को !
    सार्थक लेखन !
    सादर
    : अनुराग त्रिवेदी एहसास

    ReplyDelete
  2. न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
    अँधेरों को भी रोशन किया करो
    सुन्दर पंक्ति
    खुश कीत्ता

    ReplyDelete
  3. न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
    अँधेरों को भी रोशन किया करो

    बहुत खूब, सुन्दर !

    ReplyDelete
  4. न रहो अपने ही उजालों में ग़ुम
    अँधेरों को भी रोशन किया करो

    हर शेर खूबसूरत भाव से सजा ....
    बधाई एवं शुभकामनाएं ...

    ReplyDelete
  5. यूँ आईने से मुलाक़ात किया करो
    कभी खुद को भी यारा जिया करो.

    सुंदर भाव सुंदर प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  6. नमस्कार
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (29-04-2013) के चर्चा मंच अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ

    ReplyDelete
  7. हर शेअर खुबसूरत भाव लिए है !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postजीवन संध्या
    latest post परम्परा

    ReplyDelete
  8. वाह...
    बहुत बढ़िया ग़ज़ल....

    अनु

    ReplyDelete
  9. वाह बहुत खूब रचना
    सुंदर
    बधाई

    आग्रह है पढ़ें "अम्मा"
    http://jyoti-khare.blogspot.in

    ReplyDelete
  10. सब शेर लाजवाब, जीवन को सार्थक रूप से जीने की प्रेरणा देते हुए

    ReplyDelete